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निष्पक्ष पत्रकारिता ?

सोमवार, 8 अगस्त 2022

/ by मेरी आवाज

पत्रकारिता की शुरुआत में जब विरोध के तौर पर दुध, फल, सब्जियां सड़क पर फेंके जाते थे, तो  लगता था कि इसे गरीबों में क्यों नहीं बांटते ? सड़क पर क्यों फेंक रहे हैं? गुस्सा आता था. फिर धीरे- धीरे बात समझ आयी. 

निष्पक्ष पत्रकारिता 

सरकार, पत्रकार और प्रशासन तक बात पहुंचाने का माध्यम ही यही है, कौन पत्रकार कवर करता कि फसल के सही दाम नहीं मिले, तो अनाज, दुध या फल गरीबों में बांट दिया. अगर कवर भी होता, तो किस नेता, मुख्यमंत्री या प्रशासन को फर्क पड़ता कि सही दाम मिले या नहीं ? लगता चलो, गरीबों का तो भला हुआ. 

ऐसी स्थिति हुई कैसे ? पत्रकारिता की दिशा और खबरों के चयन के लिए क्या सिर्फ संपादक जिम्मेदार होता है ? खबरें कैसे चुनी जाती हैं,जानते हैं आप ? खबरें किसके लिए चुनी जाती हैं ?  

खबरें सिर्फ आपके लिए बनती हैं और खबरों का चयन पूरी तरह इस पर निर्भर करता है कि आप क्या पढ़ना चाहते हैं ? खासकर डिजिटल माध्यम में, जरा हेडलाइन पढ़कर बताइये कौन सी ज्यादा दमदार लग रही है ?

1 फसल की कीमत नहीं मिली, तो किसानों ने गरीबों में बांट दी सब्जी

2  सड़क पर किसानों ने फेंकी सब्जियां, जानें क्या है वजह ? 

3 उर्फी जावेद का नया लुक वायरल, तस्वीर देखकर हैरान रह जायेंगे आप ? 

इस वक्त भले थोड़ा सा भी लग रहा हो कि आप ऊपर वाली हेडलाइन पर क्लिक करेंगे लेकिन यकीन मानिये आपके ऊंगलियां उस खबर पर रूकेंगी ही नहीं. इन्हें आदत हो गयी है. ऊर्फी जावेद के नये लुक को पहले देखने की. दोषी कौन है इस पक्षीय पत्रकारिता का ?

जो जिम्मेदार हैं, वहीं अक्सर पत्रकारों को खेमे में बाटते हैं. ये सरकार के पक्ष में है, ये विरोध में है.अगर इससे भी ज्यादा लोग किसी पत्रकार को समझने लगे, तो राजनीतिक पार्टी से जोड़ते हैं, थोड़ा और समझने लगें, तो खास नेता से और ज्यादा अंदर की जानकारी हो, तो नेता के व्यपार से. 

सवाल है कि सिर्फ पत्रकार ही किसी पक्ष- विपक्ष में है या पूरी पत्रकारिता ही ऐसी है? 

मेरी समझ जो सकती है..  हम कोशिश करते हैं इसे परत दर परत समझा सकें. बड़े अखबार या नोएडा वाले मीडिया हाउस के पत्रकारों की बात छोड़ देते हैं. अपनी समझ अब भी राष्ट्रीय नहीं हुई, हां क्षेत्रीय पत्रकारिता की समझ थोड़ी हो रही है. 

झारखंड में कई छोटी वेबसाइट, जो बड़े पत्रकारों की पहचान के भरोसे चल रही हैं. संचार क्रांति के इस दौर में जहां हर हाथ मोबाइल है. यूट्यूब और वेबसाइट पत्रकारिता एक बड़े विकल्प के रूप में सामने है. इसमें वो लोग शानदार काम कर रहे हैं जिन्हें स्टॉफ की सैलरी, बड़े दफ्तर का किराया, बिजली बिल नहीं भरना पड़ता. 

वो वेबसाइट, गूगल ऐड और फेसबुक से इतना कमा लेते हैं, जितना वो किसी और जगह काम करते, तो कमाते. ऐसे लोगों की अपनी पहचान भी है और आप इनसे ईमानदारी की उम्मीद कर सकते हैं. इनसे उर्फी जावेद के साथ- साथ खेती, किसानी, बेरोजगारी सहित गांव जवाब की बेहतर ग्राउंड स्टोरी की भी उम्मीद की जा सकती है. जो आप पढ़ना चाहते हैं वो भी पढ़ाते हैं और जो पढ़ना चाहिए वो भी पढ़ाते हैं. 

पहचान उनकी भी है ,जो छोटी वेबसाइट के बड़े मालिक हैं. नेताओं के साथ उठना बैठना है. राजनीति में पूरी पकड़ है. नेताओं के इंटरव्यू के साथ- साथ और भी कई परतों में रिश्ते हैं. 

इनकी वेबसाइट, तो छोटी है लेकिन स्टाफ, बिजली बिल, दफ्तर का किराया लाखों के पार है. ऐसे में गूगल - सोशल मीडिया इतने पैसे नहीं देते कि इन सबका खर्च निकले और अपना वेतन भी बचा लिया जाये. सवाल है पैसे आते कहां से है ? 

अगर आप ऐसी छोटी वेबसाइट को छोटा मानकर आंकलन करेंगे,तो बड़ी गलती होगी. इसमें किसी बड़े नेता, बिल्डर, व्यापारी के पैसे लगे होते हैं. पैसे लगाने वाले के अपने हित हैं. ठेका, सरकारी पैरवी और अगर निवेशक नेता जी रहे तो प्रचार, राजनीतिक हित सहित कई चीजें हैं.  

ऐसे कई पत्रकार नेताओं की सोशल मीडिया भी मैनेज करते हैं, नेता के अकाउंट से ट्वीट करते हैं, उनकी खबरें अपने यहां छापते हैं फिर लिंक शेयर करते हैं. साथ ही कई दूसरे पत्रकारों से आग्रह भी करते हैं कि इसे अपने यहां भी जगह दीजिए.  जगह मिली, तो नेता को समझा भी देते हैं कि अपनी सोशल मीडिया का पावर ही ऐसा है. नेता खुश..कंपनी चलती रहती है. खबरों की चिंता कम प्रचार, प्रसार की चिंता अधिक होती है. आप ऐसे समझेंगे नहीं उदाहरण देकर समझाता हूं.. किसी गरीब शोषित को पकड़ते हैं उसकी खबर चलाते हैं, नेता के टि्वटर हैंडल से खुद मदद का भरोसा देते हैं. फिर इसे अपनी वेबसाइट पर खबर के रूप में जगह देते हैं. खबर का असर, मदद का भरोसा जैसी गर्दादार हेडलाइन के साथ. अगर  इसमें उस गरीब का भी कुछ भला होता होगा तो ठीक भी है चलो... लेकिन खबर बेचने वाला  इसे खबर के असर, पत्रकार की धाक और वेबसाइट के बड़े कदम के रूप में बेच देता है. 

समझ रहा है ना विनोद....

पत्रकारों को यह भी समझा दिया जाता है, किसके खिलाफ खबर लिखना है किसके खिलाफ नहीं. कौन मित्र है, किसको टारगेट करके मालिकों को खुश रखना है और नया निवेशक कैसे जोड़ना है. अगर निष्पक्ष का मतलब किसी के पक्ष में होना नहीं है, तो पत्रकारिता चलेगी कैसे और अगर पक्षीय होकर चली तो निष्पक्षता बची कहां? 

 इसे और बेहतर समझा जा सके इसलिए मेरे कुछ सवाल हैं, जवाब आप तर्क के साथ देंगे ऐसी उम्मीद भी है. 

क्या बगैर सहयोग के सिर्फ पांच पत्रकारों की टीम मिलकर सिर्फ ईमानदारी से वेबसाइट चला सकती है ?

विज्ञापन देने वाली संस्था, संगठन या राजनीतिक दल की सही खबर जो उनके लिए नकारात्मक हो परोसी जा सकती हैं ? 

क्या सच में निष्पक्ष पत्रकारिता का कोई मॉडल है ? 

और अगर इन सबके जवाब में निष्पक्षता सवाल के घेरे में आती है, तो इसका जिम्मेदार कौन है ? 

1 पत्रकार

2 निवेशक 

3 जनता 

मेरा जवाब आपने लेख की शुरूआत में पढ़ लिया है, आपके जवाब के इंतजार में अबतक निष्पक्ष रहा पत्रकार 

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