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सरकारी नौकरी : एक दिन के काम पर भी जिंदगी भर पेंशन, योग्यता- कुछ भी चलेगा

Mp Mla Salary And Pension झारखंड में पांच साल पूरा करने वाले विधायकों को 40 हजार रुपए प्रति माह पेंशन राशि निर्धारित है. एक बार 40 हजार रुपए का पेंशन

रविवार, 10 जुलाई 2022

/ by journalist life


Mp Mla Salary And Pension

एक दिन की भीा नौकरी कर ली,तो जिंदगी भर की राहत. समय पर पेंशन और यात्रा, फोन सहित ढेर सारी सुविधाएं.  कौन सी नौकरी है ? योग्यता क्या है ? योग्यता तो इतनी है कि एक बिल्कुल अयोग्य व्यक्ति भी आवेदन कर सकता है. हर एक व्यक्ति के पास समान अवसर. टाइम पर दफ्तर पहुंचने का लफड़ा नहीं, आप किसी कंपनी या फैक्ट्री के कर्मचारी नहीं होंगे, एक दिन के लिए भी काम किया तो जीवनभर 25 हजार रुपये से ज्यादा की पेंशन. यात्रा भत्ता के साथ कई तरह की सुविधाएं.  है, ना शानदार नौकरी... नौकरी प्राइवेट नहीं है सरकारी है. पद है सांसद या विधायक. अरे पहले फायदे तो पढ़ लीजिए फिर सोचियेगा करना है कि नहीं.  अपने राज्य के आंकड़े से समझाता हूं ,ज्यादा बेहतर समझ सकेंगे. झारखंड में पांच साल पूरा करने वाले विधायकों को 40 हजार रुपए प्रति माह पेंशन राशि निर्धारित है.  एक बार 40 हजार रुपए का पेंशन निर्धारित होते ही प्रति वर्ष उसमें केवल 4 हजार रुपए की वृद्धि होती जाएगी. 

अगर कोई नेता पूर्व सांसद या विधायक की पेंशन ले रहा है इसके बाद वो मंत्री बनता है तो मंत्री पद के वेतन के साथ ही पेंशन.  सांसदों और विधायकों को डबल पेंशन का हक है और सरकारी कर्मचारियों की सिंगल पेंशन स्कीम भी छिन ली गयी. पेंशन के लिए कोई न्यूनतम समयसीमा तय नहीं है, यानी कितने भी समय के लिए नेताजी सांसद रहे हों, पेंशन पाने का पूरा अधिकार है. सांसद या विधायक जी की मौत हो गयी, तो परिवार को आधी पेंशन. पूर्व सांसदों का सेकेंड एसी रेल का सफर मुफ्त. 

सैलरी के अलावा और भी बहुत कुछ

किसी भी सांसद को मिलने वाले पैसे के चार हिस्से होते हैं.  सैलरी, निर्वाचन क्षेत्र के लिए भत्ता, ऑफिस के लिए खर्च और सहायक के लिए वेतन। ट्रैवल अलाउंस महंगाई के हिसाब से बदलता है. कितना मिलता है इससे समझ सकते हैं कि एक नेता के तीन महीने ट्रैवल का बिल 20 लाख रुपये आया था. 2002 तक देश व प्रदेश में  सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले हर एक कर्मचारी को पेंशन मिलती थी, लेकिन 2002 के बाद OPS को बंद कर दिया गया बदले में कई जगहों पर आंदोलन हुए तो कई राज्यों ने फैसला लिया पुरानी पेंशन बहाल करने का.  20 राज्य तो ऐसे हैं जो अपने पूर्व विधायकों को किसी सांसद से ज्यादा पेंशन देते हैं. विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों को भी पेंशन मिलती है. जनप्रतिनिधियों को दी जाने वाली पेंशन की व्यवस्था इस देश में नेता और सरकारी कर्मचारियों के बीच के बड़े फर्क को दिखाती है.  ?  ब्रिटेन दुनिया का सबसे पुराना प्रजातंत्र है. वहां के सांसदों को वेतन व पेंशन की सुविधा है, परंतु वहां सांसदों का वेतन, पेंशन निर्धारित करने के लिए एक आयोग का गठन होता है। इस आयोग में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाता है। इस आयोग को स्थायी रूप से यह आदेश दिया गया है कि सांसदों को इतना वेतन और सुविधाएं न दी जाएं जिससे लोग उसे अपना करियर बनाने का प्रयास करें और न ही उन्हें इतना कम वेतन दिया जाए जिससे उनके कर्तव्य निर्वहन में बाधा पहुंचे.  

1990 और अब कितना बढ़ा वेतन 

'लेजिस्लेटर्स इन इंडिया, सैलरीज एंड अदर फैसिलिटीज' नामक एक पुस्तक में नेताओं के मिलने वाली पेंशन की तुलना की गयी है. साल  1990 में मध्यप्रदेश के विधायकों का मासिक वेतन 1,000 रुपए था. 30,000 रुपए प्रतिमाह है. उस समय निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 1,250 रुपए था, अब 35,000 रुपए है.  टेलीफोन भत्ता 1,200 रुपए प्रतिमाह था, आज 10,000 रुपए है. चिकित्सा भत्ता 600 रुपए था अब 10,000 रुपए है. स्टेशनरी भत्ता 10,000 रुपए प्रतिमाह ,  कम्प्यूटर ऑपरेटर/ अर्दली भत्ता 15,000 रुपए मिलता.  कुल 1,10,000 रुपये. सांसदों और विधायकों को एक ऐसा भत्ता भी मिलता है, जो शायद देश तो क्या, दुनिया में भी कहीं नहीं मिलता होगा। प्रत्येक सांसद और विधायक को दैनिक भत्ता मिलता है अर्थात उसे संसद और विधानसभा की दिनभर की कार्यवाही में शामिल होने के लिए दैनिक भत्ता मिलता है. 

सुविधाओं में इतना फर्क क्यों 

देश की अर्थव्यस्था और बेरोजगारी की स्थिति आपको पता ही है. आपने सुना है कि कभी इन पदों में कटौती की गयी है, वेतन में कटौती की गयी या सुविधाओं में कटौती हुई है. नेता की पेंशन तय करने के लिए  संसद में दोनों सदनों की एक संयुक्त समिति बनती है. इसमें राज्यसभा के पांच और लोकसभा के 10 सदस्य होते हैं. पेंशन और सुविधाओं की इस सूची को देखकर आपके मन में सवाल उठ रहा होगा आखिर इसे रोका क्यों नहीं जाता.  पेंशन का मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा था. एक गैर सरकारी संस्था ने इस पर सवाल खड़ा करते हुए याचिका दायर की थी. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा  केस खारिज कर दिया गया. सरकारी कर्मचारी औऱ नेता दोनों जनता की ही सेवा करते हैं फिर इनकी सुविधाओं में इतना फर्क क्यों 

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