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देश की अर्थव्यस्था का आपकी जेब पर भी पड़गा असर, जायेगी नौकरी- घट सकती है सैलरी

कोरोना संकट के पहले होने वाली आपकी कमाई और अब हो रही कमाई में फर्क है ? अगर आपका जवाब हां हैं, तो कितने का फर्क है ?

बुधवार, 2 सितंबर 2020

/ by मेरी आवाज


कोरोना संकट के पहले  होने वाली आपकी कमाई और अब हो रही  कमाई में फर्क है ? अगर आपका जवाब हां हैं, तो कितने का फर्क है ? और अगर यह फर्क बढ़ता गया और आपकी कमाई धीरे- धीरे इतनी कम होने लगे  कि घर चलाना मुश्किल हो जाये तो..  

वित्त मंत्री ने एक्ट ऑफ गॉड कहकर पल्ला झाड़ लिया ? 

मैं आपको डरा नहीं रहा हूं. हकीकत समझाने की कोशिश कर रहा हूं. शहर में मजदूरों की नौकरी गयी, तो वह गांव लौट गये. आप कहां लौटेंगे ? देश की वित्त मंत्री का बयान पढ़िये शायद स्थिति थोड़ा समझ सकें, अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस के रूप में सामने आये असाधारण 'एक्ट ऑफ गॉड' का सामना कर रही है, जिसकी वजह से इस साल आर्थिक वृद्धि दर सिकुड़ सकती है.

राज्य मांग रहे हैं केंद्र से मदद, केंद्र कह रहा है पैसे नहीं है 

अब राज्यों की स्थिति समझिये राज्यों की वित्तीय हालत खराब है.  राज्यों ने  कहा ,कलेक्शन में आई कमी की भरपाई केंद्र सरकार करे. केंद्र ने साफ कह दिया है कि उसके पास मुआवजे के लिए पैसा नहीं है. वह राज्यों के घाटे की भरपाई नहीं कर सकती.

नौकरी जा रही है, संकट बढ़ेगा

देश और राज्य की स्थिति समझ गये तो अब हमारी और आपकी बात करता हूं.  सिर्फ जुलाई महीने में 50 लाख लोगों की नौकरी गयी. एक वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने 25  मार्च के बाद नौकरी गंवा दी. जिनकी नौकरी नहीं गयी उनके वेतन में कम से कम 30 फीसद की कटौती की गयी. 

1980 के बाद बाद सामान्य सरकारी कर्ज का सबसे ऊंचा स्तर होगा

अब सवाल है, सरकार मदद क्यों नहीं कर रही ?  तो जवाब आपके पास पहले से  है, सरकार के पास पैसा नहीं है.  इतना भी नहीं है कि वह राज्यों की मदद कर सके. केंद्र एवं राज्य सरकारों का संयुक्त रूप से कर्ज चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 91 प्रतिशत के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है.  अगर यह होता है तो 1980 के बाद सामान्य सरकारी कर्ज का सबसे ऊंचा स्तर होगा. 

उपाय क्या है ? 

देश की स्थिति यह है कि संपत्ति बेचने पर विचार हो रहा है.  आपको पता है कि देश निजीकरण की तरफ बढ़ रहा है.  भारतीय रेल के निजीकरण की चर्चा चल ही रही है. इसके अलावा  सरकार ने 18 सरकारी कंपनियों को चिन्हित किया है जिनके निजीकरण पर विचार हो रहा है. सूत्रों की मानें तो 18 रणनीतिक क्षेत्रों की पहचान भी कर ली गयी है. इन क्षेत्रों में अंतरिक्ष से लेकर राजमार्ग तक शामिल हैं. आरबीआई रिपोर्ट के जारी होने के बाद सरकार मान रही है कि संकट है. चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर केवी सुब्रमणियन ने भी एक टीवी चैनल को दिये इंटरव्यू में माना है कि स्थिति गंभीर है लेकिन उन्होंने कहा गांव अच्छी स्थिति में है संकट शहरों में है. 

जीडीपी में 30 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाला एमएसएमई किस हाल में है

इससे पहले की हम गांव की स्थिति पर चर्चा करें हम एमएसएमई सेक्टर की स्थिति समझते हैं. यह सेक्टर  मैन्यूफैक्चरिंग में 45 फीसदी, निर्यात में 40 फीसदी और जीडीपी में 30 फीसदी हिस्सेदारी रखता है. इतना ही नहीं सबसे महत्वपूरण  बात यह है कि  सेक्टर 11 करोड़ लोगों को रोजगार देता है.  देश में 6.34 करोड़ एमएसएमई हैं. इनमें से 51 फीसदी गांवों में हैं. लगभग 80 फीसदी एमएसएमई के पास या तो पूंजी की कमी है. इन्हें  बैंकों या वित्तीय संस्थानों से भी मदद नहीं मिलती. 

अधिकतर एमएसएमई कर्ज़ के बोझ में दबे  हैं. सरकार हर बार इन्हें संकट से उबारने की कोशिश करती है लेकिन स्थिति यह है कि देश के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के पास इतना पैसा नहीं है कि इनकी मदद की जा सके. कुछ एमएसएमई सिर्फ इसलिए भी टिके हैं क्योंकि डिमांड है अब देश की स्थिति में यह कबतक टिके रहेंगे कहना मुश्किल है. एक सर्वे बताता है कि ज्यादातर लोगों की नौकरी अनलॉक शुरू होने के बाद गयी क्योंकि कारोबारी यह समझ गये कि वह अभी मुनाफे की तरफ नहीं बढ़ने वाले 

गावं की अर्थव्यस्था 

आज की स्थिति छोड़िय 2017 के निति विभाव का एक आंकड़ा है  देश के 80  फीसद किसानों की आय मात्र  छह से सात हजार महीने है. देश में लॉकडाउन के बाद लगभग 15 करोड़ मजदूर वापस लौटे क्या उनके लौटने के बाद उन्हें गांव में रोजगार मिल रहा है.

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