कहानियां हमारे आसपास हैं, बिल्कुल पास, राजधानी रांची से मात्र 16 किमी की दूरी पर इतिहास की बेहद महत्वपूर्ण कहानी इंतजार कर रही है. कहानी, नागवंश के पहले शासक फणिमुकुट की, उनके जन्म की. इतिहास के पन्ने पलटेंगे तो इस कहानी का महत्व और इसके पुराने होनें का अंदाजा लगेगा. आज से करीब 2000 वर्ष पहले नागवंश के शासन का आरंभ होता है. पिठौरिया के सुतयाम्बे गांव मे एक अधंरिया और एक इंजोरिया तालाब है. अंधरियां तालाब अब भी है लेकिन इंजोरिया तालाब पूरी तरह खत्म हो गया है, जहां तालाब था वहां अब खेती होती है. इंजोरिया की कहानी पता नहीं लेकिन अंधेरिया तालाब से जुड़ी एक कहानी आज तलाश लाया हूं.
पढ़िये नागवंश के पहले शासक के जन्म की कहानी..
जनमेजय अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र थे. राजा परीक्षित अभिमन्यु के पुत्र थे. जन्मेजय को जब यह पता चला कि पिता परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के दंश से हुई, तो उन्होंने विश्व के सभी सर्पों को मारने के लिए नागदाह यज्ञ करवाया. उन यज्ञों की अग्नि में नागों को पटक दिया जाता था. यज्ञ से डरकर पुंडरिक नाग भागकर बनारस में शरण लेते हैं.
पुण्डरीक(पुंडलिक) वंश की उत्पत्ति: पुण्डरीक(पांडुरंग) का मतलब हैं सफेद नाग! इतिहास कार इस वंश को सूर्यवंशी भी कहते हैं क्योंकि पुण्डरीक नाग ने प्रभु श्रीराम के जेष्ठ पुत्र कुशा के कुल में जन्म लिया था.
जब पुण्डरीक नाग बनारस पहुंचे , तो एक ब्राहम्ण कन्या पार्वती से उनका विवाह होता है. पार्वती को संदेश होता है कि वह कुछ छुपा रहे हैं. वह जिद पकड़ती है कि उन्हें सब जानना है. फिर वह पत्नी को लेकर तीर्थ यात्रा पर निकले लेकिन उस वक्त वह गर्भवती थी. हारकर उन्हें आंधारी तलाब के किनारे सारा सच बताना पड़ा. सच बताने के बाद वह इसी तलाब में समा गये. उसी वक्त पार्वती ने एक बच्चे को जन्म दिया और उन्होंने भी देह त्याग दिया.
बच्चे को अकेला देखकर पुण्डरिक नाग दोबारा बाहर आये और बच्चे की फण फैलाकर रक्षा करने लगे. उसी समय राजा मद्राय मुंडा के राजपुरोहित गुजर रहे थे. राजपुरोहित बच्चे को लेकर पहुंचे. उसी वक्त राजा के घर में एक बच्चा हुआ था उन्होंने अपने बच्चे का नाम मुकुट और पुंडरिक के बच्चे का नाम फणी मुकुट रखा क्योंकि नाग पुंडरिक उनकी फन फैलाकर रक्षा कर रहे थे.
जब दोनों बच्चे बड़े हुए थे राजा चुनने की बारी आयी, दोनों की परीक्षा हुई. फणीमुकुट राय जो की नाग के पुत्र थे उन्हे योग्य पाया गया इस तरह नागवंश की स्थापना हुई.
यहां एक पहाड़ भी है जो इतिहास से जुड़ा है..
पिठौरिया का यह इलाका बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र करीब 400 वर्षों तक छोटानागपुर (वर्त्तमान झारखंड) की राजधानी थी. यह क्षेत्र इतिहास का केंद्रबिंदु बना रहा,क्योंकि उस वक्त यह क्षेत्र हजारीबाग, बनारस और बंगाल को जोड़ने का एकमात्र रास्ता था, जो पगडंड़ियों और घने जंगलों से घिरा था.
नागवंश के शासन की शुरूआत से पहले यहां मुंडाओं का लोकतांत्रिक शासन था. पहली सदी में मंदरा मुंडा प्रधान मानकी थे, जिनका गढ़ पिठौरिया के बगल का क्षेत्र सुतियाम्बे था. इस व्यस्था को लोकतांत्रिक इसलिए भी माना जाता है क्योंकि प्रधान मानकी ( राजा) मुंडा का निर्वाचन सबकी सहमति से होता था. पहले गांव में पाहन चुना जाता था, फिर 8-10 गांवों के राजनीतिक प्रमुख मिलकर पड़हा चुनते थे. भी पड़हा आपस में मिलकर प्रधान मानकी चुनते थे, जिसे लोग अपना राजा मानते थे.
यह क्षेत्र 61 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है सुतियाम्बे के मुड़हर पहाड़ में मंदुरा मुंडा की कचहरी लगती थी,जहां लोगों की समस्याओं के अलावा राज-काज के कई विषयों पर चर्चाएं होती थी और निर्णय लिए जाता था. मुड़हर पहाड़ में आज भी कई राज छुपे हैं, कई गुफायें हैं जिसका पता नहीं चला. आसपास रहने वाले लोग यह मानते हैं कि यहां कई लोगों को खुदाई के दौरान या जंगल में घूमने के दौरान कई चीजें मिली है. आसपास के इलाकों में खुदाई होती है तो पुरानी ईटें मिलती है. कई लोग मानते हैं कि यहां अभी भी खजाना छुपा है.
इतिहासकारों का मानना है कि नागवंश का शासन यहां से अन्य क्षेत्रों में भी फैला. वर्त्तमान में रातुगढ़ के राजा इसी वंश की 66-68वीं पीढ़ी है.
पहाड़ के सबसे ऊपरी हिस्से में मुड़हर बाबा विराजमान है, जिनका सिर शरीर से अलग है. इसी पहाड़ में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी कुछ दूरी पर जगह-जगह स्थापित है. अब इस पहाड़ से कई चीजें हटने भी लगी है. असमाजिक तत्व यहां आकर तोड़फोड़ भी करने लगे हैं जिससे यहां की पौराणिक चीजें जो इतिहास की धरोहर थी खत्म हो रही हैं.
पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचने के बाद नजारा बेहद शानदार है. ऐसा लगता है जैसे इतनी ऊंचाई पर चढ़ना सफल रहा. कुछ स्थानीय लोग यह बताते हैं कि पहाड़ के बीचों-बीच गुफा के अंदर कुंआ है, जिसकी गहराई आज तक नहीं नापी जा सकी है. ऐसा कहा जाता है कि एक बार गहराई मांपने की कोशिश हुई थी, सात खटियों की रस्सी लगी थी,लेकिन वास्तविक गहराई का पता नहीं चला.
एक और छोटी सी कहानी- इस इलाके में एक बार भयंकर सुखा पड़ा , इंद्र भगवान की पूजा हुई तो उन्होंने खुश होकर इलाके में खूब बारिश कीउसी वक्त से यहां इंद मेले का आयोजन होने लगा. इस देश के प्राचीन मेलों में से एक माना जाता है.
3 टिप्पणियां
बेहतरीन स्टोरी बनी है। बधाई..!!
बेहतरीन स्टोरी है पंकज। संग्रहणीय लेख तैयार करने के लिए बधाई..!!
पुंडरीक नाग की कहानी बी ए पार्ट 3 में भी दी हुई है जो की पुंडरीक नाग की कहानी विस्तृत से उल्लेख है।
नागदाह यज्ञ के भय से भागे पुंडरीक को वाराणसी गंगा घाट के पर भूख प्यास से व्याकुल बाल्यावस्था में एक ब्राह्मण ने आश्रय और लालन पालन कर समय के साथ पार्वती नमक ब्राह्मण कन्या के साथ विवाह कराई इसके उपरांत पुंडरीक को सोजाने के बाद दो जिह्वा बाहर निकल आती थी। एक बार उसकी पत्नी देख लेती हेयर इसी घटना को जानने के लिए बार बार पूछती है जो की पुंडरीक दो जिह्वा का रहस्य बताना नहीं चाहता और टाल जाता।
एक दिन तीर्थ यात्रा के दौरान रास्ते में ही दो जिह्वा का रहस्य जानने की जिद कर देती है और मजबूर हो कर पुंडरीक को रहस्य बताना पड़ता है(पुंडरीक इस बात को भली भाती जनता था की रहस्य किसी के सामने बताने पर मैं वास्तविक रूप में आजाऊंगा इसीलिए रहस्य किसीको बताना नही चाहता था)अपना रहस्य बताते ही नाग का रूप धारण कर लेता है। जिसको देख कर भय के कारण पार्वती प्रसौ के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाती है।
इधर पुंडरीक अंधेरा तलब समा जाता है फिर बालक का रोने की आवाज सुन कर पुनः बाहर निकल फन फैला कर बच्चे को रक्षा करता है। फिर इसके आगे की कहानी की जिक्र आप ने कर ही दिया है।
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