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खूंटी जिले के इस गांव में सिर्फ सरकार से नहीं पत्रकारों से भी उठ गया है लोगों का विश्वास

रांची : प्रशासन और सरकार से अगर लोगों का भरोसा उठता है, तो खबर बन जाती है, चर्चा होती है लेकिन पत्रकारों ( लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ) से भी अगर पूरे गांव का भरोसा उठ जाये तो.. मुझे पता है चुनाव का समय है, आप सिर्फ जीत, हार की बात करना चाहते हैं. नयी सरकार आयेगी या मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आयेगी लेकिन यकीन मानिये इस सवाल से भी ज्यादा जरूरी है लोकतंत्र पर विश्वास....

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

/ by मेरी आवाज
रांची : प्रशासन और सरकार से अगर लोगों का भरोसा उठता है, तो खबर बन जाती है, चर्चा होती है लेकिन पत्रकारों  ( लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ) से भी अगर पूरे गांव का भरोसा उठ जाये तो..  मुझे पता है चुनाव का समय है, आप सिर्फ जीत, हार की बात करना चाहते हैं. नयी सरकार आयेगी या मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आयेगी लेकिन यकीन मानिये इस सवाल से भी ज्यादा जरूरी है लोकतंत्र पर विश्वास....

खूंटी से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित घाघरा गांव पत्थलगड़ी के लिए चर्चित रहा. इसी गांव में वोटर आईडी कोर्ट, आधार कार्ड और राशन कार्ड जला दिये गये. विरोध इतना बढ़ा कि कड़िया मुंडा के आवास से सुरक्षा कर्मियों को अगवा कर लिया गया. कई दिनों तक गांव वाले अपना घर छोड़कर जंगल में भटकते रहे. अब कई लोगों पर केस दर्ज है. इस गांव के लोगों की नाराजगी सिर्फ सरकार और प्रशासन के खिलाफ नहीं है नाराजगी पत्रकारों के खिलाफ भी है.



  उस वक्त क्या थे हालात, यहां है ग्राउंड रिपोर्ट 

गांव वालों का कहना है कि हमारी बात किसी ने नहीं सुनी, हम सरकार और पुलिस प्रशासन से तो उम्मीद नहीं करते लेकिन पत्रकार भी आकर हमारी बात नहीं सुनें तो किसके पास जाएं. गांव में अब भी अजीब सी शांति है, गांव वाले अभी भी  पारंपरिक हथियार लेकर बाहर निकलते हैं. गांव के युवा कहते हैं गलती हुई  है तो सजा मिलनी चाहिए लेकिन कई लोंगों पर बेवजह एफआईआर दर्ज कर दिया गया, जब पत्रकार हमारी बात सुनने आये तो हमने अपनी बात रखी लेकिन वापस लौटकर उन्होंने खूंटी मुख्यालय से बात करके उनकी बात लिख दी, हमारा पक्ष कहीं नहीं.

क्या कहता है गांव 

सिर्फ रांची से नहीं, दिल्ली, मुंबई से पत्रकार आये लेकिन किसी ने हमारा दर्द नहीं सुना. उस वक्त पुलिस ने हम पर क्या अत्याचार किया है हम ही जानते हैं. एक गर्भवती महिला को इतनी बुरी तरह मारा कि उसका बच्चा विकलांग पैदा हो गया, अब जीवन भर उसे तकलीफ होगी. क्या यह गलती नहीं है ? . गांव के ज्यादातर युवा या तो दूसरे शहर चले गये  जो हैं भी वह कमाने केलिए दूसरे शहर का रुख करने की योजना बना रहे हैं. एक व्यक्ति ने कहा, मैं कई सालों तक गुजरात रहकर लौटा हूं, मेरा नाम भी एफआईआर में दर्ज है लेकिन मैं गांव नहीं छोड़ना चाहता मेरी बीवी है, दो बच्चे हैं. मैं गांव में खेती करके खुश हूं लेकिन पुलिस बार- बार परेशान करेगी तो मैं क्या करूंगा.


 वोटर आईडी कार्ड जलाने के बाद गांव में पुलिस वाले छापेमारी कर रहे थे. पूरा का पूरा गांव में जंगल में भाग गया था, जंगल में खाने का कुछ सामान ले गये और वही रहे माहौल शांत हुआ तो गांव वाले धीरे- धीरे अपने घर लौटे. इस गांव में दर्द और तकलीफ की कई कहानियां है लेकिन गांव वाले अब अपना दर्द साझा करने से डरते हैं, उन्हें डर है कि इस तकलीफ का इस्तेमाल भी उनके खिलाफ किया जायेगा. गांव वाले अब भी बाहरी व्यक्ति को संदेह की नजर से देखते हैं, बात करने से पहले सोचते हैं और अगर बात ना करना चाहें तो हिंदी जानते हुए भी मुंडारी भाषा में  बात करते हैं और अच्छी हिंदी में सिर्फ इतना कह देते हैं कि हमें हिंदी नहीं आती. 

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