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जलती हुई मोमबत्ती की डीपी से मिल जायेगा शहीदों को सम्मान ?

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शनिवार, 24 सितंबर 2016

/ by मेरी आवाज
उरी हमले के बाद कई पोस्ट पढ़े. सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी थी जैसे भारत अभी हमला कर दे इससे नीचे तो हमें कुछ चाहिए ही नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए उनके समर्थक और विरोधी दोनों सवाल कर रहे थे, कहां गया आपका 56 इंच का सीना?. आतंकियों के 10 सिर लाने का वादा याद दिलाया गया. 


प्रधानमंत्री ने भी कड़े शब्दों में एक ट्वीट कर दिया. कई लोग इस ट्वीट के बाद बिफर पड़े,  यह तो हमेशा होता आया है आप कुछ अलग कहिये. प्रधानमंत्री से अपील और शिकायत के अलावा भी कुछ लोग सक्रिय है,  एक मित्र ने अभी कुछ देर पहले एक जलती हुई मोमबत्ती की तस्वीर भेजी. कहा, इसे तीन लोगों को भेजिये और उनसे कहिये कि इसे अपनी डीपी ( प्रोफाइल पिक्चर चाहे वो व्हाट्सएप की हो फेसबुक की या अन्य किसी सोशल नेटवर्किंग साइट की) बना लें. इससे आप उरी हमले में मारे गये जवानों को श्रद्धाजंलि दे पायेंगे. कमाल है ना,अब श्रद्धा भी मेरी डीपी के माध्यम से जाहिर होगी. मुझे याद है, पठानकोट हमले और कश्मीर में कुछ जवानों के शहीद और घायल होने के बाद भी यही मैसेज आया था. लोगों ने अपनी डीपी बदल दी थी. 

जरा सोचिये हम इंटरनेट और अपनी डीपी के माध्यम से क्या संदेश देना चाहते हैं ?. डीजिटल इंडिया..  सोशल मीडिया और सेल्फी का दौर ऐसा है कि अब सबकुछ कहना आसान हो गया है. हम तो आम लोग हैं. हमने डीपी में जलती मोमबत्ती लगाकर बता दिया कि दुख है.  जिन्हें हमसे ज्यादा दुख है वो सड़क पर मोमबत्ती लेकर निकले और बता दिया कि हमें आपसे ज्यादा दुख है. जलती हुई मोमबत्ती से हमने कई बार अपना दुख जताया है. दिल्ली में दामिनी के वक्त का दर्द याद है आपको. आपने ना सही कई लोगों ने मोमबत्ती जलायी होगी. जरा सोचिये उसके बाद क्या बदला ?. क्या हम बदले? आप बदले?, बलात्कार कम हुए?. दिल्ली में बलात्कार के मामले कम हुए अगर आकड़े ना देख पायें तो कल की एक घटना देख लीजिए. एक युवती की हत्या चाकू से  24 वार करके कर दी गयी. कई लोग आसपास खड़े होकर देखते रहे. हत्या के बाद जब युवती का शव घर पहुंचा, तो वही भीड़ नाराज हो गयी. नारे लगाने लगी. मुझे पूरा विश्वास है कि कुछ लोगों ने जलती मोमबत्ती सड़क या अपने डीपी पर जरूर लगा ली होगी. 

हमारी संवेदना और श्रद्धाजंलि क्या सिर्फ मोमबत्ती के जलने तक रहती है.  युद्ध का बात करने वाले क्या यह नहीं समझ सकते कि युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं होता. दोनों तरफ लोग मारे जायेंगे. आप अगर 100 पाकिस्तान मारोगे तो भगवान ना करें लेकिन हमारे एक जवान को तो चोट पहुंचेगी. आप सोच लीजिए उस वक्त आपको 100 पाकिस्तानी मारे जाने की खुशी होगी कि एक जवान को चोट लगने का दर्द. आप उस वक्त किसकी डीपी लगायेंगे. जवान को लगी चोट के लिए मोमबत्ती की या 100 पाकिस्तानियों के मारे जाने की खुशी में फुलझड़ी की. इसका मतलब यह नहीं कि हम पाकिस्तानियों को जवाब नहीं दे रहे. कभी- कभी थप्पड़ गाल पर पड़ती है दर्द होता है लेकिन उसकी आवाज नहीं होती और ना ही यह दिखाययी देता है. 

प्रधानमंत्री ने बड़े संयम से कूटनीति स्तर पर पाकिस्तान को घेरने की योजना बनायी. सिंधू जल समझौता, आतंकवाद के लिए पाक की जमीन के इस्तेमाल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाया. इसके अलावा हमारी आर्मी सैन्य पक्षों पर फैसला ले रही होगी. संभव है कि आतंकियों के ठिकाने पर भी हमले किये जाएं. 18 जवानों के शहीद होने का दर्द उनके घरवालों से ज्यादा शायद ही किसी को होगा. आवाज उठानी है तो उनके लिए उठाइये. कई ऐसे शहीद जवानों के परिवारों से किये गये वादे पूरे नहीं किये गये. किसी से पेट्रोलपंप का वादा पूरा नहीं हुआ तो किसी को नौकरी देने का वादा. आवाज उठानी है तो उन नेताओं के खिलाफ आवाज बुलंद कीजिए जो शहीदों पर भद्दी टिप्पणी करते हैं. आवाज उठानी है तो उनके खिलाफ उठाइये जो इसका समर्थन करते हैं बुरहान वानी आतंकी नहीं युवा नेता था. कई ऐसी चीजें है जो आपके आवाज से बदल सकती है और बदलनी जरूरी है.  
 

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