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सारंडा के विकास का सपना- क्या थी सरकार की योजनाएं?

jharkhand saranda forest पश्चिमी सिंहभूम जिले में सारंडा अपनी अलग पहचान रखता है ना सिर्फ झारखंड में बल्कि देशभर में.

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

/ by मेरी आवाज

सारंडा का सच 



 पश्चिमी सिंहभूम जिले में  सारंडा के विकास की योजनाओं को पढ़कर स्पष्ट पता चलता है कि सारंडा के विकास को लेकर सरकार का विजन क्या था ?कितने बड़े - बड़े सपने थे.  सारंडा पर कुछ भी लिखने से पहले उन सपनों से आपका परिचय जरूरी है ताकि जब सारंडा का सच आपके सामने हो, तो आप उन सपनों से आज के हालात की तुलना कर सकें. पश्चिमी सिंहभूम जिले में सारंडा अपनी अलग पहचान रखता है ना सिर्फ झारखंड में बल्कि देशभर में. कुछ दिनों पहले सारंडा से लौटा हूं. बहुत कुछ देखा है, समझने की कोशिश की है और सारंडा के विकास की योजनाओं को तलाशने की भी कोशिश की है. यह मेरी सारंडा सीरीज की पहली कड़ी है. इसके कुछ और कड़ियां भी आयेंगी जिन्हें जोड़कर ना सिर्फ सारंडा को मेरी आंखों से देख सकेंगे बल्कि सरकार के पुराने वादे, दावे को भी समझ सकेंगे.
 

इससे पहले की जो मैं देखकर लौटा वो आपके सामने रखूं जरूरी है कि जो सरकार दिखा रही है. उसे देखा जाये ताकि आप समझ सकें कि ग्राउंड रिपोर्टिंग और एसी में बैठकर की जाने वाली रिपोर्टिंग में फर्क होता है. 14 इंच की छोटी सी स्क्रीन वो सब नहीं दिखाती जो आपकी आंखें ग्राउंड पर देखती हैं, लाल धूल में सने पैर जो महसूस करते हैं वो दफ्तर में बैठे लिखने से महसूस नहीं होता. पत्रकारिता बंद कमरों में नहीं होती. 



सारंडा एक वक्त नक्सल का सबसे बड़ा गढ़ था. नक्सलियों का सफाया करने के लिए ऑपरेशन ऐनाकोंडा चलाया गया. स्थानीय लोगों को भरोसा दिया गया कि नक्सलियों के खात्मे के साथ- साथ आपके विकास के लिए भी काम होगा.  इस योजना का नाम दिया गया  सारंडा एक्शन प्लान, कुछ समय बाद इसका नाम बदलकर सारंडा डेवलपमेंट प्लान कर दिया गया.  सारंडा जंगल लगभग 820 वर्ग किमी में फैला है.  वन के बीचो-बीच लगभग 550 मीटर (1,800 फुट) पर बसा थलकोबाद नामक ग्राम है, जो चक्रधरपुर से 89 किमी और जमशेदपुर से 160 किमी दूर स्थित है.

18 से 20 अक्टूबर 2011 को तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने केन्द्र व राज्य सरकार के अधिकारियों की एक विशेष टीम बना कर उन्हें सारंडा में विकास से संबंधित रिपोर्ट तैयार करने को कहा. इस टीम में एन. मुरुगानंदम (संयुक्त सचिव, मनरेगा), नीता केजरीवाल (निदेशक, एनआरएमएल), एसपी वशिष्ठ (निदेशक, मनरेगा), कमलेश प्रसाद (एनएमएमयू), मीरा चटर्जी, वरुण सिंह, विनय वुतुकुरु (तीनों विश्व बैंक), परितोष उपाध्याय (स्पे. सचिव आरडी विभाग, झारखंड), एसएन पांडेय (प्रोजेक्ट निदेशक, जेएसएलपीएस, झारखंड) सहित कई अधिकारियों को शामिल किया गया. 



जिला प्रशासन द्वारा मनोहरपुर प्रखंड के छह ग्राम पंचायतों के 56 गांवों के लिए एक्शन प्लान तैयार किया था. इसमें 10 वन ग्राम व 10 झारखंडी ग्राम शामिल थे. इस रिपोर्ट के अनुसार सारंडा के लगभग सात हजार परिवारों (आबादी लगभग 37 हजार) को सीधे लाभ पहुंचाना.

इस पूरी योजना में जो खर्च की राशि थी वो 454 करोड़ रुपये थी. इससे पहले चर्चा थी कि सरकार 540 करोड़ रुपये खर्च  करेगी लेकिन बाद में इसे कम किया गया. इन पैसों से यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए  लघु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा देने पर जोर था. यह ध्यान रखना होगा कि सरकार ने इसके लिए उस वक्त यानि साल 2011 में छह महीने का समय तय किया था.

 इतना ही नहीं यहां के लोगों को इंदिरा आवास योजना के तहत छत देने की भी योजना थी. इस योजना के तहत  लगभग चार हजार परिवारों के लिए मकान बनाना था. 56 रोजगार मित्रों की नियुक्ति.  6 हजार से अधिक जॉब कार्ड, पीएमजीएसवाई के तहत 11 सड़कों और एक पुल का निर्माण करना था.  7 हजार सौर लालटेन, 7 हजार ट्रांजिस्टर और 7 हजार साइकिलों का वितरण (सेल प्रबंधन द्वारा) किया गया था. ऐसी अनेक योजना जिसमें शुद्ध पानी की व्यस्था के लिए योजना.  उस समय क्षेत्र में करीब 12 बड़ी खनन कंपनियां काम कर रही थीं. झारखंड में जेएसएलपीएस परियोजना 12 संगठनों के साथ काम कर रही थी जो एलएडंटी, डॉन बॉस्को और आईएल एंड एफएस सहित रोजगार से जुड़े कौशल प्रशिक्षण दे रही थीं.

इस कड़ी में आपने पढ़ा है कि सरकार का विजन क्या था, सारंडा को लेकर उनके सपने क्या थे. अगली किस्त में आप पढ़ सकेंगे सारंडा का सच क्या है? विकास के सपने कितने पूरे हुए हैं ? 





 

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