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इनसे सीखिये जब धक्का देकर कोई नीचे गिरा दे, तो दोबारा कैसे उठें ?

गुरुवार, 17 जून 2021

/ by मेरी आवाज

जब आप जिंदगी में एक सीढ़ी ऊपर चढ़ने की कोशिश करेंगे, तो आपको हर तरह के लोग मिलेंगे पहले वो जो आपसे पहले उस सीढ़ी पर खड़े हैं, जो आपको जगह नहीं देंगे, दूसरे आपको वहां से धक्का देंगे और तीसरे जो आपके नीचे वाली सीढ़ी मैं आपको अपने से भी पीछे खींचने की कोशिश करेंगे. 

मैंने देखा है,  इस भीड़ में आपसे ऊपर ऐसे लोग भी होंगे  जिनमें काबिलियत नहीं है ऊपर खड़े रहने की फिर ये कैसे यहां तक पहुंचे? इसका सीधा सा जवाब है,   काबिलियित के साथ - साथ इस ऊंचाई पर खड़े रहने के लिए और भी गुण चाहिए चापलुसी, मक्कारी, झूठ, फरेब ये सब  आप में नहीं है. आपको वक्त लगेगा लेकिन एक दिन होगा.. 

अक्सर जब आप पीछे खींच लिये जाते हैं, तो आपकी तरह कई लोग परेशान होते हैं और सच पूछिये, तो यही तो सफर है. इस ऊपर नीचे की धक्का मुक्की में ही अपने असल काबिलियत के दम पर जगह बनाने वाले लोग लंबे समय तक काबिज रहते हैं. आप जैसे लोग जब ऊपर पहुंचते हैं, तो अकेले नहीं पहुंचते अपने नीचे वाले काबिल लोगों को भी ऊपर लाने की कोशिश करते हैं . 

जिंदगी है, धक्का मुक्की चलती रहती है लेकिन इस बीच हमें लड़ने का जुनून सीखना है, तो अपने ऊपर वालों से तो कतई मत सीखिये, सीखिये उनसे जो हर दिन लड़ रहे हैं. ऊंचाई पर खड़े रहने के लिए बड़ा पद अच्छा ओहदा पाने के लिए नहीं हर दिन जीने के लिए

आज मैं ऐसी ही हिम्मत लेकर लौटा हूं. कांपते हुए हाथ बता रहे थे, उनकी उनकी उम्र साठ साल की तो होगी. इस कांपते हाथों को सहारा देने के लिए पत्नी  उनके साथ थी.  छोटा सा ठेला जिसमें चना भूनकर लोगों को खिलाते हैं और इसी से पैसे जोड़कर खुद के लिए खाना जुगाड़ करते हैं. 

तीन बेटे हैं लेकिन इस उम्र में उन्हें अपनी पत्नी के साथ रोटी के लिए मेहनत करनी पड़ती है. बेटे क्यों नहीं मदद करते हैं, यह पूछे जाने पर हल्की सी मुस्कान के साथ कहते हैं आजकल के बच्चे कहां मां - बाप का दर्द समझते हैं.साल 1980 से रांची में होड़तोड़ मेहनत करके घर बना दिया. बच्चों को बड़ा कर दिया और भी जो फर्ज पिता का है वो निभा दिया और बच्चों का फर्ज खैर... 

हम छोटी - छोटी परेशानियों से हार जाते हैं. इतनी मेहनत के बाद भी बुढ़ापे में कई सीढ़ियां नीचे उतरकर  भी ये हंसते हुए मेहनत करते हैं, आखिर कहां से आती है इनमें इतनी हिम्मत, क्या हमें हाथ जोड़कर थोड़ी सी हिम्मत उस चने के साथ चटनी की तरह ही सही उधार नहीं लेनी चाहिए. मैं लेकर लौटा हूं सोचा लिख दूं शायद आंखे बंद करके आप ऐसे ही किसी व्यक्ति को याद कर सकें और दोबारा खड़ें हो, अपनी जगह बनाने के लिए मौका मिलने पर एक कदम आगे की सीढ़ी पर कदम बढ़ाने के लिए, अगर हिम्मत मिले तो मेरा इतना लिखना सफल माना जायेगा 

 

  

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