अपने गांव से कंक्रीट के जंगल में वापल लौट आया हूं लेकिन गवई वाला मन बार- बार इसी तरफ शरीर को धकलेता है. एक बार फिर रांची से थोड़ी ही दूरी पर गांव है जहां इस बार टहलता रहा. चलिये इस वीडियो के माध्यम से साथ में हटलते हैं.
शहर में बारूदों का मौसम है, गांव चलो अमरूदों का मौसम है
अपने गांव से कंक्रीट के जंगल में वापल लौट आया हूं लेकिन गवई वाला मन बार- बार इसी तरफ शरीर को धकलेता है. एक बार फिर रांची से थोड़ी ही दूरी पर गांव है
मेरा ब्लॉग है तो जाहिर है जिंदगी में मेरे अनुभव पर आधारित होगा. पत्रकार हूं, जो देखता हूं, सोचता हूं कई बार लिखता हूं तो कभी- कभी लिख नहीं पाता. यहां लिखता हूं, खुलकर यहां शब्दों की कोई सीमा नहीं कोई ये कहने वाला नहीं कि ये लाइन हटा दो, वो लाइन जोड़ लो. यात्रा करना पसंद हैं और लिखना शौक.
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