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ट्रेंड बन गया है पत्रकारों को गाली देना , मदद करने से कौन पीछे हटता है साहब

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गुरुवार, 25 अगस्त 2016

/ by मेरी आवाज
कांधे पर अपनी पत्नी को रखकर ले जाते दाना मांझी 
दाना मांझी की मदद करना ठीक होता या इस दर्द का सबके सामने लाकर पत्रकार ने अपना धर्म निभाया वो ठीक है . आप अपना जवाब सोच लीजिए . दाना मांझी अपनी मृत पत्नी को कांधे पर रखकर 10 किमी का सफर तय करके अपने घर पहुंचे. अस्पताल से मृत पत्नी को घर तक लाने के लिए कोई सुविधा नहीं मिली. खबर देने वाले पत्रकार ने एक ऐसी मानवीय खबर दी जिससे सवाल खड़े हुए.

 कुछ वरिष्ठ लोगों का पोस्ट मैंने फेसबुक पर पढ़ा. वो कह रहे हैं, पत्रकार को मदद करनी चाहिए थी. पत्रकार ने पैसे देकर दाना मांझी को मजबूर किया होगा, कि ऐसे ले चलो. सच क्या है ? मुझे नहीं पता, लेकिन इस तरह के सवाल खड़ा करने वालों ने मेरे मन में सवाल खड़ा कर दिया.  एक पत्रकार के लिए क्या जरूरी है?. मेरे मन में इस बात को लेकर जरा संशय नहीं है कि मदद करें या ना करें ? . मदद  जरूर करनी चाहिए. पर क्या सिर्फ मौके पर पत्रकार मौजूद था ? . इस दस किमी के सफर में किसी ने उसे ऐसे नहीं देखा ? कौन मदद के लिए आगे आया! सवाल उस पर क्यों नहीं ?. बिहार में भयंकर बाढ़ है. कई ऐसी तस्वीरें हैं, जो हमें परेशान कर देती हैं, तो क्या हम यह कहने लगें कि फोटो खींचने वाले ने मदद क्यों नहीं की ?  संभव है कि उसने पैसे देकर फोटो खींचे हों ? हर बात पर क्या पत्रकार की नियत पर सवाल खड़ा करने की आदत नहीं हो गयी है हमें.

बरखा दत्त, राजदीप सरदेशाई, रवीश  जैसे बड़े  पत्रकारों पर सवाल खड़े करते - करते अब  हर पत्रकार पर सवाल खड़े करने का ट्रेड चल पड़ा  है. दाना मांझी मुझे दशरथ मांझी की याद दिलाते हैं. उन पर बनी फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे उन्होंने पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया. इसके पीछे ताकत थी प्रेम की जिसने उनका हौसला बुलंद किया. फिल्म में एक दृश्य था, जिसमें एक पत्रकार कहता है कि वो अपना अखबार निकालना चाहता है लेकिन यह बहुत मुश्किल काम है. उस दृश्य में मांझी ने कहते हैं , पहाड़ कांटने से भी ज्यादा मुश्किल है क्या ? अब तो जिस तरह हर बात पर सवाल खड़े होते हैं, यह उससे भी मुश्किल लगने लगा है.

मुझे  तो लगता है अगर उस वक्त  फेसबुक होता तो  कुछ लोग कह देंते कि पत्रकार ने दशरथ मांझी को पहाड़ कांटने में मदद क्यों नहीं की? . मुझे तो लगता है किसी ने पैसे देकर बुढ़े आदमी को बहला फुसलाकर ऐसी खबर बनायी है. जरा सोचिये,  अगर हर बार इस तरह के सवाल खड़े हों, तो एक पत्रकार के लिए काम करना कितना मुश्किल होगा. किसी नक्सली को इंटरव्यू करके कोई आया , तो सवाल खड़े हो जायेंगे पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी ?  किसी दुर्घटना की खबर लिखी, तो सवाल खड़े होंगे खून दान क्यों नहीं किया ?  चोरी की खबर लिख दी, तो सवाल कर देंगे पत्रकार है, तो चोर को जरूर जानता होगा मदद पुलिस की मदद क्यों नहीं की ? . मदद करने से कौन पीछे हटता है साहब.
 हर इंसान के अंदर दया होती है लेकिन इस खबर ने जितने सवाल खड़े हुए, क्या उस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए. किसी ने कहा सरकार पर सवाल खड़े नहीं होने चाहिए. तो किसी पर खड़े होने चाहिए अस्पताल प्रशासन ने अगर गरीबों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? अस्पताल या सरकार की नीतियां. सरकार ने अब जांच के आदेश दिये हैं . मेरे मन में सवाल उठ रहा है कि जांच किन चीजों की होगी ? इस पर की खबर सच्ची है या झूठी ?, या इस पर की सच में गरीबों के लिए अस्पताल में कैसी व्यवस्था है.

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