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50 साल से चल रही साधारण दोस्तों की असाधारण कहानी...

कहानी, दोस्ती की, एक ऐसा रिश्ता जिससे आप अपना सबकुछ शेयर कर लेते हैं. इस कहानी को आपतक उदय शंकर झा पहुंचा रहे हैं, जो मेरे गहरे मित्र हैं. ऐसी कहानियों से अपनी दोस्ती की उम्र बढ़ती है. उन्होंने कहानी भेजी, मैंने कहानी पढ़ी लेकिन आप सभी तक पहुंचाने में वक्त लग गया. मेरी कमजोरी है, अच्छी चीजों में वक्त लगा देता हूं. उदय ने जैसी भेजी वैसी ही आपतक पहुंचा रहा हूं.

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

/ by मेरी आवाज
कहानी इनके शानदार दोस्ती की 

इस बार कहानी, दोस्ती की, एक ऐसा रिश्ता जिससे आप अपना सबकुछ शेयर कर लेते हैं. इस कहानी को आपतक उदय शंकर झा पहुंचा रहे हैं, जो मेरे गहरे मित्र हैं. ऐसी कहानियों से अपनी दोस्ती की उम्र बढ़ती है. उन्होंने कहानी भेजी, मैंने कहानी पढ़ी लेकिन आप सभी तक पहुंचाने में वक्त लग गया. मेरी कमजोरी है, अच्छी चीजों में वक्त लगा देता हूं. उदय ने जैसी भेजी वैसी ही आपतक पहुंचा रहा हूं.

अगर आपके जीवन में एक सच्चा दोस्त हो,तो यक़ीनन तनाव से भरे इस जीवन मे आपकी उम्र दो-चार वर्ष ज़रूर बढ़ जाएगी लेकिन वर्तमान में जो हालात हैं कभी कभी रिश्तों में भी मिलावट नज़र आता है और ऐसे में आपकी मुलाकात अगर ऐसे लोगों से हो जाये जिसकी कल्पना सिर्फ क़िताबों और फिल्मों तक सिमट कर रह गई हो तो कैसा अनुभव होगा आप इसका अंदाजा नहीं लगा सकते और ख़ासकर तब जब वो रिश्ता दोस्ती का हो.
                
दोस्त के पिता की गहरी दोस्ती


मेरे एक मित्र है जितेंद्र कुमार मैं उनके छोटे भाई की शादी में गोमिया( बोकारो) गया हुआ था. शादी के घर में भीड़ स्वाभाविक है, लोग कामों में व्यस्त थे.  मैंने देखा  जितेंद्र के पिताजी (श्री विश्वनाथ प्रजापति) एक कमरे में कुछ लोगों के साथ बैठकर बातें कर रहे थे. मैं इस इंतेज़ार में था कि जब वो  फुरसत में होंगे तब उनसे जाकर उनसे मिलूंगा. मैं खड़ा होकर इंतज़ार कर रहा था. लगभग 15 मिनट हो गए उनकी बातें खत्म ही नहीं हो रही थी. कोई उनके पास काम लेकर जाता तो वो किसी और से कह देते. कई बार उन्होंने यह कहकर काम टाल दिया कि बहुत ज़रूरी काम कर रहा हूँ. थोड़ा इंतेज़ार करो.

आपस में ही खोये थे तीनों दोस्त

कमरे में ज़ोर ज़ोर से हँसी ठहाके की आवाज़ें आती. मुझे जानने की इच्छा होने लगी कि आख़िर ये लोग हैं कौन जो ख़ुद में ही डूबे हुए हैं ? मैं जितेंद्र को तलाशने लगा. वो सामने से आ ही रहा था, मैंने पूछा भी अंदर चाचा जी किन लोगों से बात कर हैं.

मुस्कुराते हुए उसने कहा भी वो अभी अलग दुनिया में हैं. अभी यहां बम भी विस्फोट हो जाए, तो उनलोगों को पता नहीं चलेगा. इनलोगों की मंडली जहां लगती है, माहौल ऐसा ही होता है. पिताजी के बायीं तरफ जो बैठे हैं वो हैं भोला सिंह भोजपुर बिहार के रहने वालें है और दायीं तरफ जो हैं, वो है बब्बन सिंह वो भी बिहार के ही हैं लेकिन पूरा परिवार दिल्ली में रहता है और वो भी उनलोगों के साथ वहीं रहने लगे हैं.

उनके दोस्ती की कहानी
जिगरी दोस्त हैं सब, किसी के घर में कोई भी समारोह हो सब एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं. जितेंद्र की बातें सुनकर मन बड़ा खुश हो रहा था. उनलोगों की जगह मन ही मन ख़ुद को अपने दोस्तों के साथ बैठा महसूस कर रहा था. सोच रहा था हम सभी दोस्त भी तो ऐसा ही सोचते हैं. उनलोगों के बारे में बहुत कुछ जानने की इच्छा हो रही थी,  मैंने जितेंद्र की बातों को बीच मे ही रोककर कहा, तुमसे बाद में बात करता हूँ और प्रणाम चाचा जी बोलते हुए अंदर उनलोगों के कमरे में घुस गया. चाचा जी ने आशीर्वाद देकर उनलोगों से परिचय करवाते हुए कहा,  बड़ा बेटा का दोस्त है 'उदय' . बिना देर किए मैंने उनलोगों के पैर छूते हुए पूछा आप सभी दोस्त हैं ?

कहां मिले, कैसे हुई दोस्ती
एक दूसरे को कब से और कैसे जानते ? पहले वो लोग मुस्कुराये और कहा,  हाँ दोस्त हैं और एक दूसरे को 1968 से जानते है. लगभग 50 साल हो गए जब हम सब सिंचाई विभाग तेनुघाट में कार्यरत थे, तब से जानते हैं और हां एक दूसरे को कैसे जानते इसका जवाब हम लोगों के पास भी नहीं है. ये सब ईश्वर की रची रचाई है. मेरी उत्सुकता और बढ़ गयी और मैं सवालों की बौछार करने लगा. मंडली में सबसे बुजुर्ग भोला सिंह जी से पूछा आपलोग दोस्त कैसे बन गए?  उन्होंने कहा, हमारे बीच में कब प्रेम हुआ पता ही नहीं चला. बस हम सब इतने करीब हो गए कि अब मरते दम तक साथ ही रहना है.

घर का पता बदला लेकिन दोस्ती का नहीं
भले ही हम सभी दोस्तों का पता बदल गया हो पर हमारी आत्मा एक साथ रहती है. वैसे हम सब चार दोस्त थे हम तीन के अलावे एक जमुना सिंह थे जो पिछले साल हमे छोड़ कर चले गए पर हम उस परिवार से आज भी जुड़े हैं. 96 वर्षीय भोला सिंह ने एक व्यक्ति जो उनकी पैर दबा रहा था उनसे परिचय करवाते हुए बताया कि ये जमुना सिंह के पुत्र हैं. मैं देख कर हैरान था कि आज के दौर में जहां बेटा बाप के पांव नहीं दबाता वहीं एक व्यक्ति अपने पिताजी के दोस्त के पैर दबा रहा था. 

भोला सिंह जी सिंचाई विभाग से 2001 मे ही रिटायर हो गए और बाकी  दोस्त 2007 में लेकिन वो बताते हैं कि हम सब एक दूसरे से कभी भी मिलने का मौका नहीं छोड़ते. चाहे घर मे पूजा हो या शादी  हम सभी एक सप्ताह पहले से ही वहां डेरा जमा लेते हैं. बातों बातों   ये भी पता चला कि शादी में सारे दोस्त उपवास में थे मतलब ये की वो सभी हर समारोह में हर पूजा में मिलकर हर रिश्ते को बख़ूबी निभाते आ रहे हैं. सच में दोस्ती हो तो ऐसी ही हो. ईश्वर हमे भी ऐसे ही दोस्ती निभाने की शक्ति दे.

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